विधानसभा चुनावों में उलटफेर के साथ होगा 2024 का अंत – अतुल मलिकराम (राजनीतिक रणनीतिकार)

Date:

लोकसभा चुनाव के परिणामों को अभी गिनती के दिन ही बीते हैं कि देश में एकबार फिर चुनावी माहौल अपने चरम पर पहुंचता नजर आ रहा है। चुनाव आयोग द्वारा जम्मू कश्मीर और हरियाणा में विधानसभा चुनाव की तारीखों की घोषणा के साथ ही सियासी गलियारों में सरगर्मी तेज हो गई है। वहीं महाराष्ट्र और झारखण्ड पर बने सस्पेंस ने भी राजनीतिक घरानों की धड़कनें बढ़ा रखी है। जहां एक ओर विशेष राज्य का दर्जा ख़त्म होने के बाद, पहली बार विधानसभा चुनावों का साक्षी बनने जा रहा जम्मू-कश्मीर, राजनीतिक दलों से लेकर आम जनता तक के लिए चर्चा का विषय बन गया है, वहीं महाराष्ट्र में महायुति की अग्नि परीक्षा ने भी इस विस चुनाव में लोगों की दिलचस्पी बढ़ा दी है। उधर दशकों के संघर्ष से खड़ी की पार्टी से नजरअंदाज हुए, झारखंड टाइगर के राजनीतिक भविष्य पर भी सब की निगाहें टिकी हुई हैं। ऐसे में इन राज्यों के चुनावी परिणाम किसकी दिवाली रौशन करेंगे और किसके पटाखों में सीलन का कारण बनेंगे ये तो वक्त ही बताएगा लेकिन अभी तक के विश्लेषण के आधार पर मैं इतना जरूर कह सकता हूँ कि यह विधानसभा चुनाव सभी राज्यों में सत्ता परिवर्तन की ओर इशारा कर रहे हैं। मसलन जम्मू कश्मीर अब्दुल्ला परिवार की सत्ता में वापसी देख सकता है, वहीं महाराष्ट्र उद्धव ठाकरे पर भरोसा जता सकता है, जबकि हरियाणा में कांग्रेस हुंकार भरते नजर आ सकती है तो झारखण्ड हेमंत सोरेन के हाथों से फिसलकर, बीजेपी के लिए अच्छी खबर ला सकता है।
फिलहाल नम्बर्स के फेर में बहुत अधिक न पड़ते हुए शुरूआती विश्लेषण के आधार पर यह कहा जा सकता है कि 90 सीटों वाले जम्मू कश्मीर में नेशनल कांफ्रेंस का पलड़ा भारी रहने वाला है, जिसे कांग्रेस के आक्रामक तेवर का समर्थन प्राप्त होगा साथ ही कुछ अन्य लोकल ताकतें भी इस गठबंधन का सहारा बनेंगी। बीजेपी की उम्मीदवारों की सूची जारी करने और वापस लेने की हड़बड़ी ने जाहिर किया है कि 10 सालों बाद सत्ता की चाहत के साथ मैदान में उतरने को बेताब स्थानीय नेताओं की महत्वाकांक्षाएं, पार्टी को संभावित नुकसान का विशेष कारण बन सकती हैं। वहीं राहुल की विकसित छाप और अब्दुल्ला का स्थानीय सियासत का व्यापक अनुभव, इस जोड़ी को जीत के मुहाने पर पहुँचाने का विशेष कारण बन सकता है।
288 सीटों वाले महाराष्ट्र की बात करें तो एकनाथ शिंदे और अजीत पवार गुट के लिए अस्तित्व का सवाल बन चुका यह विधानसभा चुनाव और अधिक मुश्किलें लेकर आने वाला हो सकता है, और इसका सीधा लाभ उद्धव ठाकरे की शिवसेना को मिलने की उम्मीद है। चूंकि महा विकास अघाड़ी के लोकसभा चुनावों में बेहतर प्रदर्शन ने जनता और कार्यकर्ता दोनों में एक सकारात्मक छवि विकसित की है, और समाजवादी पार्टी, पीडब्ल्यूपीआई, सीपीआई और निर्दलीय विधायकों सहित कई अन्य राजनीतिक दलों के समर्थन ने और अधिक मजबूती प्रदान की है। ऐसे में यह कहा जा सकता है कि उद्धव ठाकरे एंड टीम का पलड़ा फिलहाल बीजेपी और सहयोगी दलों की तुलना में अधिक भारी है, जहां टिकट बंटवारे की खींचतान की समस्या और खुलकर सामने आने की उम्मीद है, और नुकसान भी लोकसभा की तुलना में अधिक होने की आशंका है।
उधर हरियाणा इस बार बदलाव के मूड में दिख रहा है। 90 विधानसभा सीटों वाले इस राज्य में कांग्रेस भले अकेले दम पर बहुमत लाने की स्थिति में अभी भी न हो लेकिन समर्थकों के बल पर सबसे बड़ी पार्टी बनने की राह पर चल रही है। दूसरी ओर बीजेपी के लिए उठ रहे खिलाफत के स्वरों के बीच जननायक पार्टी के दुष्यंत चौटाला और आजाद समाज पार्टी के चंद्रशेखर आजाद के साथ में चुनाव लड़ने के फैसले ने सत्ता पक्ष के लिए और मुश्किलें खड़ी कर दी हैं। किसानों, युवाओं और महिलाओं की आवाज को अनसुना करने का इल्जाम झेल रही सत्तारूढ़ बीजेपी के लिए यह चुनाव बचाना जरा भी आसान नहीं होने वाला है। ऐसे में सत्ता परिवर्तन की उम्मीद कर रहे लोगों को सकारात्मक परिणाम मिलने की उम्मीद की जा सकती है।
अंत में झारखंड की कुल 81 विधानसभा सीटों में अधिकतम सीटों पर बीजेपी के कब्ज़ा करने की उम्मीद है। अभी तस्वीर बहुत साफ़ नहीं है लेकिन चंपई सोरेन का बीजेपी में शामिल होना, राज्य में बीजेपी के संघर्ष के दिनों पर लगाम लगाने का कार्य कर सकता है। आदिवासियों के लिए आरक्षित 28 सीटों पर विशेष ध्यान देते हुए कोल्हान क्षेत्र की 14 सीटों पर बीजेपी की नजरें गड़ी हुईं हैं, जहां पिछली बार एक भी सीट हाथ नहीं लगी थी। दूसरी ओर लोकसभा चुनाव में मिली ठीक ठाक कामियाबी ने भी बीजेपी का जोश बनाये रखा है। वहीं अर्जुन मुंडा और बाबूलाल मरांडी जैसे दिग्गज आदिवासी नेताओं को आगे कर बीजेपी ने इन चुनावों में कोई रिस्क न लेने का रास्ता भी चुना है। भले हेमंत सोरेन के पास हाई कोर्ट का बयान और समर्थकों का भावनात्मक सपोर्ट है लेकिन जमीनी समीकरणों में बीजेपी और समर्थित दलों का वजन भारी नजर आता है। जबकि कांग्रेस के परीक्षा की घड़ी नजदीक आने तक पार्टी नेताओं के खिलाफ सख्त रुख अपनाने, अंदरूनी घमासान से निपटने, और टिकट बंटवारे में व्यस्त रहने की ही आशंका है। जिसका कोई विशेष लाभ गठबंधन को नहीं मिलने वाला है।
कुल मिलाकर देखें तो झारखंड, महाराष्ट्र और हरियाणा से इस बार सत्ता परिवर्तन की उम्मीद की जा सकती है, जबकि जम्मू-कश्मीर कांग्रेस व साथियों के बूते बीजेपी के विकास के फॉर्मूले को दरकिनार कर सकता है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Share post:

Subscribe

spot_img

Popular

More like this
Related

वकीलों पर हमला किसी भी सूरत में बर्दाश्त नही – एडवोकेट शिवदत्त वशिष्ठ

फरीदाबाद। फरीदाबाद जिला न्यायालय में आज अधिवक्ता भूपेश जोशी...

मुकुल कॉन्वेंट स्कूल सेक्टर 86 बुढैना फरीदाबाद में तीन दिवसीय खेल महोत्सव शुरू

पलवल फरीदाबाद के 50 विद्यालयों के एक हजार खिलाडी...